आत्मकथ्य (Atmakatha) Class 10 Hindi पाठ सार, पाठ व्याख्या

आत्मकथ्य (Atmakatha) Class 10 Hindi पाठ सार, पाठ व्याख्या, कठिन शब्दों के अर्थ आपको JEE Wallah द्वारा प्रदान किया गया है।आज हम आप लोगों को कृतिका भाग-2 के कक्षा-10  का पाठ-3 (Atmakatha Class 10 Summary Kshitiz Chapter 3 ) के आत्मकथ्य कविता की व्याख्या (Atmakatha Vayakhya ) के बारे में बताने जा रहे है जो कि जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित है। इस लेख में हम हिंदी कक्षा 10 अ क्षितिज भाग 2 के पाठ – 3 आत्मकथ्य के पाठ प्रवेश , पाठ सार, पाठ व्याख्या, कठिन शब्दों के अर्थ और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर के बारे में चर्चा करेंगे|

Atmakatha Class 10 Hindi Summary

आत्मकथ्य (Atmakatha) Class 10 Hindi Summary पाठ सार, पाठ व्याख्या Kshitiz Chapter 3

लेखक परिचय

इस कविता में जयशंकर प्रसाद ने जीवन के यथार्थ एवं अभाव पक्ष की मार्मिक अभिव्यक्ति की है| जयशंकर प्रसाद का जन्म सन् 1889 में वाराणसी में हुआ। काशी के प्रसिद्ध क्वींस कॉलेज में वे पढ़ने गए परंतु स्थितियाँ अनुकूल न होने के कारण आठवीं से आगे नहीं पढ़ पाए। बाद में घर पर ही संस्कृत, हिंदी, फ़ारसी का अध्ययन किया। छायावादी काव्य प्रवृत्ति के प्रमुख कवियों में से एक जयशंकर प्रसाद का सन् 1937 में निधन हो गया। उनकी प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं-चित्राधार, कानन कुसुम, झरना, आँसू, लहर और कामायनी । आधुनिक हिंदी की श्रेष्ठतम काव्य-कृति मानी जाने वाली कामायनी पर उन्हें मंगलाप्रसाद पारितोषिक दिया गया। वे कवि के साथ-साथ सफल गद्यकार भी थे। अजातशत्रु, चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त और ध्रुवस्वामिनी उनके नाटक हैं तो कंकाल, तितली और इरावती उपन्यास। आकाशदीप, आँधी और इंद्रजाल उनके कहानी संग्रह हैं।

प्रसाद का साहित्य जीवन की कोमलता. माधुर्य, शक्ति प्रसाद और ओज का साहित्य माना जाता है। छायावादी कविता की अतिशय काल्पनिकता, सौंदर्य का सूक्ष्म चित्रण, प्रकृति-प्रेम, देश-प्रेम और शैली की लाक्षणिकता उनकी कविता की प्रमुख विशेषताएँ हैं। इतिहास और दर्शन में उनकी गहरी रुचि थी जो उनके साहित्य में स्पष्ट दिखाई देती है। प्रेमचंद के संपादन में हंस (पत्रिका) का एक आत्मकथा विशेषांक निकलना तय हुआ था। प्रसाद जी के मित्रों ने आग्रह किया कि वे भी आत्मकथा लिखें। प्रसाद जी इससे सहमत न थे। इसी असहमति के तर्क से पैदा हुई कविता है-आत्मकथ्य।

आत्मकथ्य कविता का भावार्थ

यह कविता पहली बार 1932 में हंस के आत्मकथा विशेषांक में प्रकाशित हुई थी। छायावादी शैली में लिखी गई इस कविता में जयशंकर प्रसाद ने जीवन के यथार्थ एवं अभाव पक्ष की मार्मिक अभिव्यक्ति की है। छायावादी सूक्ष्मता के अनुरूप ही अपने मनोभावों को अभिव्यक्ति करने के लिए जयशंकर प्रसाद ने ललित, सुंदर एवं नवीन शब्दों और बिंबों का प्रयोग किया है। इन्हीं शब्दों एवं बिंबों के सहारे उन्होंने बताया है कि उनके जीवन की कथा एक सामान्य व्यक्ति के जीवन की कथा है। इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे महान और रोचक मानकर लोग वाह-वाह करेंगे। कुल मिलाकर इस कविता में एक तरफ कवि द्वारा यथार्थ की स्वीकृति है तो दूसरी तरफ एक महान कवि की विनम्रता भी।

काव्यांश 1

मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी अपनी यह, 
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी। 
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन - इतिहास 
यह लो, करते ही रहते हैं अपने व्यंग्य मलिन उपहास 
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती। 
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे यह गागर रीती। 

अर्थ - इस कविता में कवि ने अपने अपनी आत्मकथा न लिखने के कारणों को बताया है। कवि कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति का मन रूपी भौंरा प्रेम गीत गाता हुआ अपनी कहानी सुना रहा है। झरते पत्नियों की ओर इशारा करते हुए कवि कहते हैं कि आज असंख्य पत्तियाँ मुरझाकर गिर रही हैं यानी उनकी जीवन लीला समाप्त हो रही है। इस प्रकार अंतहीन नील आकाश के नीचे हर पल अनगिनित जीवन का इतिहास बन और बिगड़ रहा है। इस माध्यम से कवि कह रहे हैं की इस संसार में हर कुछ चंचल है. कुछ भी स्थिर नहीं है। यहाँ प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे के मज़ाक बनाने में लगे हैं, दूर किसी को दूसरे में कमी नजर आती है। अपनी कमी कोई नहीं कहता, यह जानते हुए भी तुम मेरी आत्मकथा जानना चाहते हो। कवि कहता है कि यदि वह उन पर बीती हुई कहानी वह सुनाते हैं तो लोगों को उससे आनंद तो मिलेगा, परन्तु साथ ही वे यह भी देखेंगे की कवि का जीवन सुख और प्रसन्नता से बिलकुल ही खाली है।।

काव्यांश 2

किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले- अपने को 
समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले। 
यह विडंबना! अरी सरलते हँसी तेरी उड़ाऊँ मैं। 
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ में। 
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की। 
अरे खिल-खिलाकर हँसतने वाली उन बातों की । 
मिला कहाँ वह सुख जिसका में स्वप्न देकर जाग गया। 
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया। 

अर्थ - कवि कहते हैं कि उनका जीवन स्वप्न के समान एक छलावा रहा है। जीवन में जो कुछ वो पाना चाहते हैं वह सब उनके पास आकर भी दूर हो गया। यह उनके जीवन की विडंबना है। वे अपनी इन कमजोरियों का बखान कर जगहंसाई नहीं करा सकते। वे अपने छले जाने की कहानी नहीं सुनाना चाहता। जिस प्रकार सपने में व्यक्ति को अपने मन की इच्छित वस्तु मिल जाने से वह प्रसन्न हो जाता है, उसी प्रकार कवि के जीवन में भी पएक बार प्रेम आया था परन्तु वह स्वपन की भांति टूट गया। उनकी सारी आकांक्षाएं महज मिथ्या बनकर रह गयी चूंकि वह सुख का स्पर्श पाते पाते वंचित रह गए। इसलिए कवि कहते हैं कि यदि तुम मेरे अनुभवों के सार से अपने जीवन का यड़ा भरने जा रहे हो तो मैं अपनी उज्जवल जीवन गाथा कैसे सुना सकता हूँ।

काव्यांश3

जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुन्दर छाया में। 
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया 
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की । 
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की? 
छोटे से जीवन की कैसे बड़े कथाएं आज कहूँ? 
क्या यह अच्छा नहीं कि ओरों की सुनता मैं मौन रहूँ? 
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्मकथा? 
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मीन व्यथा । 

अर्थ – इन पंक्तियों में कवि अपने सुन्दर सपनों का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि उनके जीवन में कुछ सुखद - पल आये जिनके सहारे वे वर्तमान जीवन बिता रहे हैं। उन्होंने प्रेम के अनगनित सपने संजोये थे परन्तु वे सपने मात्र रह गए, वास्तविक जीवन में उन्हें कुछ ना मिल सका। कवि अपने प्रेयसी के सुन्दर लाल गालों का वर्णन करते हुए कहते हैं कि मानो भोर अपनी लाली उनकी प्रेयसी के गालों की लाली से प्राप्त करती है परन्तु अब ऐसे रूपसी की छवि अब उनका सहारा बनकर रह गयी है क्योंकि वास्तविक जीवन वे क्षण कवि को मिलने से पहले ही छिटक कर दूर चले गए। इसलिए कवि कहते हैं कि मेरे जीवन की कथा को जानकर तुम क्या करोगे, अपने जीवन को वे छोटा समझ कर अपनी कहानी नही सुनाना चाहते। इसमें कवि की सादगी और विनय का स्पष्ट प्रमाण मिलता है। वे दूसरों के जीवन की कथाओं को सुनने और जानने में ही अपनी भलाई समझते हैं। वे कहते हैं कि अभी उनके जीवन की कहानी सुनाने का वक़्त नहीं आया है। मेरे अतीतों को मत कुरेदो, उन्हें मीन रहने दो।

प्रमुख कार्य

  1. काव्य-कृतियाँ – चित्राधार, कानन कुसुम, झरना, आंसू, लहर, और कामायनी। 
  2. नाटक - अजातशत्रु, चन्द्रगुप्त, स्कंदगुप्म, ध्रुवस्वामिनी। 
  3. उपन्यास - कंकाल, तितली और इरावती । 
  4.  कहानी संग्रह - आकाशदीप, आंधी और इंद्रजाला  

कठिन शब्दों के अर्थ

  1. मधुप - मन रूपी भौरा
  2. अनंत नीलिमा - अंतहीन विस्तार
  3. व्यंग्य मलिन - खराब ढंग से निंदा करना
  4. गागर रीती - खाली घड़ा
  5. प्रवंचना - धोखा
  6. मुसक्या कर - मुस्कुरा कर
  7. अरुण कोपल - लाल गाल
  8. अनुरागिनी उषा - प्रेम भरी भोर
  9. स्मृति पाथेय - स्मृति रूपी सम्बल
  10. कथा-अंतर्मन

महत्वपूर्ण प्रश्न: आत्मकथ्य (Atmakatha) Class 10 Hindi

Question 1. कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है ?
Answer : कवि आत्मकथा लिखने से इसलिए बचना चाहते है, क्योंकि- आत्मकथा लिखने के लिए अपने मन की दुर्बलताओं, कमियों का उल्लेख करना पड़ता है। अपनी सरलता के कारण कवि ने कई बार धोखा खाया है इसलिए वह अपने व्यक्तिगत जीवन को उपहास का कारण नहीं बनाना चाहता। जीवन में बहुत सारी पीडादायक घटनाएँ हुई हैं, उन्हें याद करने से घाव फिर से हरे हो जाएँगे। कवि अपने व्यक्तिगत अनुभवों को दुनिया के समक्ष व्यक्त नहीं करना चाहता।

Question 2. आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में 'अभी समय भी नहीं कवि ऐसा क्यों कहता है ?
Answer : कवि को लगता है कि आत्मकथा लिखने का अभी उचित समय नहीं हुआ है, क्योंकि कवि का जीवन दुःख और अभावों से भरा है मुश्किल से कवि को अपनी पुरानी वेदना से मुक्ति मिली है, आत्मकथा लिखकर कवि अपने मन में दबी असफलताओं को याद करके पुनः दुःखी नहीं होना चाहता है। कवि को ऐसा लगता है कि उसे अभी ऐसी कोई बड़ी उपलब्धि नहीं मिली है जिसे वह लोगों के सामने प्रेरणा स्वरूप रख सके।

Question 3. स्मृति को 'पाथेय' बनाने से कवि का क्या आशय है ?
Answer : 'पाथेय' अर्थात् रास्ते का भोजन या सहारा । 'पाथेय' यात्रा में यात्री को सहारा देता है। सुखद स्मृति को पाथेय बनाने से कवि का आशय स्मृति के सहारे जीवन जीने से है। कवि की प्रेयसी उससे दूर हो गई है। कवि के मन-मस्तिष्क पर केवल उसकी मधुर स्मृति ही है। इन्हीं स्मृतियों को कवि अपने जीने का सहारा बनाना चाहता है।

Question 4. भाव स्पष्ट कीजिए- "मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया। आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।"
Answer : कवि कहना चाहता है कि जिस प्रेम के कवि सपने देख रहे थे वो उन्हें कभी प्राप्त नहीं हुआ। कवि ने जिस सुख की कल्पना की थी वह उसे कभी प्राप्त न हुआ और उसका जीवन हमेशा उस सुख से वंचित ही रहा। इस दुनिया में सुख छलावा मात्र है। हम जिसे सुख समझते हैं वह अधिक समय तक नहीं रहता है, स्वप्न की तरह जल्दी ही समाप्त हो जाता है।

Question 5. भाव स्पष्ट कीजिए- "जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।"
Answer : कवि अपनी प्रेयसी के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहता है कि प्रेममयी भोर वेला भी अपनी मधुर लालिमा उस लिया करती थी। कवि की प्रेमिका का मुख सौंदर्य उषाकालीन लालिमा से भी बढ़कर था।

Question 6. उज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
Answer : कवि यह कहना चाहता है कि अपनी प्रेयसी के साथ चाँदनी रातों में बिताए गए ये सुखदायक क्षण किसी उज्वल तरह ही पवित्र है जो कवि के लिए अपने अन्धकारमय जीवन में आगे बढ़ने का एकमात्र सहारा बनकर रह गया। ऐसी स्मृ सबके सामने प्रस्तुत कर अपनी हँसी नहीं उड़ाना चाहता है अतः वह अपने जीवन की व्यक्तिगत मधुर स्मृतियों को कि साथ बाँटना नहीं चाहता बल्कि अपने तक ही सीमित रखना चाहता है।

Question 7. 'आत्मकथ्य' कविता की काव्यभाषा की विशेषताएं उदाहरण सहित लिखिए।
Answer : 'जयशंकर प्रसाद' द्वारा रचित कविता 'आत्मकथ्य की विशेषताएँ निम्नलिखित है-

  • प्रस्तुत कविता में कवि ने खड़ी बोली हिंदी भाषा का प्रयोग किया है- "यह लो करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास।"
  • अपने मनोभावों में सजीवता लाने के लिए कवि ने ललित, सुंदर एवं नवीन बिंबों का प्रयोग किया है जैसे "जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में। अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।"
  • कवि ने नवीन शब्दों का प्रयोग किया है- यह विडंबना अरी सरलते तेरी हंसी उड़ाऊ में। भूले अपनी या प्रवंचना औरो की दिखलाऊँ मैं।" यहाँ विडंबना, प्रवंचना जैसे नवीन शब्दों का प्रयोग किया गया है जिससे काव्य में सुंदरता आई है।
  • छायावाद की प्रमुख विशेषता मानवीकरण मानवेतर पदार्थों को मानव की तरह सजीव बनाकर प्रस्तुत किया गया है जैसे-थकी सोई है मेरी मौन व्यथा अरी सरलता तेरी हँसी उड़ाऊँ में।
  • अलंकारों के प्रयोग से काव्य सौंदर्य बढ़ गया है - खिलखिलाकर, आते-आते में पुनरुक्ति अलंकार का प्रयोग किया गया है। अरुण कपोलों में रूपक अलंकार है। मेरी मौन, अनुरागी उपा में अनुप्रास अलंकार है।

Question 8. कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है ?
Answer : कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे वह अपनी प्रेयसी नायिका के माध्यम से व्यक्त किया है। कवि कहता है कि नायिका स्थान में उसके पास आते-आते मुस्कुरा कर भाग गई। कवि कहना चाहता है कि जिस प्रेम के वे सपने देख रहे थे वो उन्हें कभी प्राप्त नहीं हुआ। कवि ने जिस सुख की कल्पना की थी वह उसे कभी प्राप्त न हुआ और उसका जीवन हमेशा उस सुख से वंचित ही रहा। इस दुनिया में सुख छलावा मात्र है। हम जिसे सुख समझते है वह अधिक समय तक नहीं रहता है, स्वप्न की तरह जल्दी ही समाप्त हो जाता है।

Question 9. इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
Answer : इस कविता को पढ़कर प्रसाद जी के व्यक्तित्व की ये विशेषताएं हमारे सामने आती हैं- सरल और भोले प्रसाद जी एक सीधे-सादे व्यक्तित्व के इंसान थे उनके जीवन में दिखाया नहीं था उनके मित्रों ने उनके साथ छल किया फिर भी वे भोलेपन में जीते रहें। गंभीर और मर्यादित वे अपने जीवन के सुख-दुख को लोभापुर व्यक्त नहीं करना चाहते थे, अपनी दुर्बलताओं को अपने तक। सीमित रखना चाहते थे। अपनी दुर्बलताओं को समाज में प्रस्तुत कर ये स्वयं को हँसी का पात्र बनाना नहीं चाहते थे। विनयशील प्रसाद जी का स्वयं को दुर्बलताओं से भरा सरल दुर्बल इनसान कहना उनकी गिता प्रकट करता है।

Question 10. आप किन व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे और क्यों ?
Answer : हमे महान, प्रसिद्ध और कर्मठ लोगों की आत्मकथा पढ़कर उनसे शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। हमें देशभक्त क्रान्तिकारी, लेखक, कलाकार आदि की आत्मकथाएँ पढ़नी चाहिए। उनकी जीवन-गाथा पढ़कर हमें यह जानने मिलेगा की उन्होंने सफलता कैसे प्राप्त की | सफलता की राह में आगे बढ़ते हुए उन्हें कौन-सी विपत्तियों का सामना करना पड़ा और कैलो उस पर विजय पाई I


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इस पोस्ट के माध्यम से हम आत्मकथ्य (Atmakatha) Class 10 Hindi Summary पाठ सार, पाठ व्याख्या Kshitiz Chapter 3 के बारे में  जाने जो की जयशंकर प्रसाद (Jaishankar Prasad) द्वारा लिखित है। हमें उम्मीद है कि आत्मकथ्य कविता की व्याख्या आपको इस अध्याय को समझने में मदद करेंगे। यदि आपके पास आत्मकथ्य कविता का भावार्थ Class 10 के संबंध में कोई प्रश्न हैं, तो हमसे संपर्क करें और हम जल्द ही आपसे संपर्क करेंगे।